बिरसा की कर्म भूमि, उलगुलान का क्षेत्र खूंटी हिंसा प्रतिहिंसा की आग में झुलस रहा है. कई नदियों, शांत सरोवरों, वनों और मेहनतकश खुद्दार मुंडाओं का क्षेत्र बर्बादी के कगार पर है. इस क्षेत्र की भूमि और आस पास की खनिज संपदा के लूट के लिए निहित स्वार्थी तत्व तरह-तरह की साजिशों में संलग्न है. आये दिन वहां हत्यायें हो रही हैं. और अधिकतर हत्या के मामले रहस्य बन कर रह जाते हैं. भाजपा के शीर्ष नेता और खूंटी के कई बार सांसद रहे कड़िया मुंडा के आवास से महज दो-तीन किमी दूर गत 24 जून को क्षेत्र के एक युवा सामाजिक कार्यकर्ता रामजीव मुंडा की हत्या हो गई. लेकिन अब तक पुलिस इस गुत्थी को नहीं सुलझा सकी है.
8 जुलाई को आदिवासी जनाधिकार महासभा और कुछ अन्य संगठनों से जुड़े लोंगों की एक फैक्ट र्फाइंडिंग टीम ने खूंटी के घाघरा गांव का दौरा किया. इस टीम में आलोका कुजूर, झामुमो की स्नेहलता, प्रफुल्ल लिंडा, सिराज, वर्षा, एक स्थानीय पत्रकार और मैं शामिल थे. हमने घाधरा गांव के ग्रामीणों से, मारे गये रामजीव मुंडा की पत्नी और मां से, घटना के वक्त रामजीव मुंडा के साथ रहे दो अन्य ग्रामीणों से, खूंटी थाना में इस मामले का अनुसंधान कर रहे पुलिस अधिकारी से बात की. लेकिन कही से भी इस हत्या की गुत्थी सुलझाने की दिशा में कोई क्लू नहीं मिला. जबकि हत्या की परिप्रेक्ष्य और पूरी परिस्थितियों पर गौर करें तो हत्या की यह गुत्थी सुलझ जानी चाहिए थी.
पहले हम घटना के ब्योरे को जान ले जो थाने में दर्ज एफआईआर और ग्रामीणों से बातचीत से सामने आयी. ब्योरा कुछ इस प्रकार है. रामजीव मुंडा की पत्नी ने एक बच्ची को जन्म दिया था. वह अस्वस्थ थी. उसका इलाज अस्पताल में चला और फिर परिजन अपनी कुछ मान्यताओं के अनुरुप भी पूजा पाठ कर रहे थे. इस क्रम में उन्हें समीप के गांव साकेडीह ले जाया गया था जहां पूजा की विधि पूरी की गयी. पूजा के सामान आदि को डिसपोज करने के लिए रामजी मुंडा दो अन्य लोगों के साथ अपने गांव घाधरा लगभग रात नौ बजे लौट रहा था. रास्ते में लोवाडीह पीड़ी के पास पहले से घात लगाये चार लोगों ने हमला किया. बांस के बल्ले से उन्हें मार कर गिरा दिया गया. दो तो भाग गये. रामजी मुंडा को वे पीटते रहे और उसके चेहरे और आस पर टांगी से गहरे वार कर उसे मार डाला. गांव में साथ के एक व्यक्ति ने सूचना पहुंचाई, दूसरा समीप की ही झाड़ झंकार में छुपा रहा. गांव से बीस पच्चीस लोग पहुंचे. तब तक उसकी मौत हो चुकी थी. रात भर वे वही उसे अगोरते रहे. अगली सुबह खूंटी थाना को सूचना दी गयी. और एफआईआर 25 को ही रामजीव मुंडा के एक चचेरे भाई ने किया.
एफआईआर में हत्या के कारणों की कोई जानकारी नही दी गयी है. किसी पर संदेह नहीं व्यक्त किया गया है. उसकी पत्नी और ग्रामीण भी हत्या की कोई वजह नहीं बता सके. सबों ने यही कहा कि उसकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी.
यह तो स्पष्ट है कि रामजीव मुंडा, जिन्हें हम रामजी मुंडा के नाम से जानते थे, नितांत व्यक्तिगत कारणों से या किसी तरह के पारिवारिक झगड़ों की वजह से नहीं मारे गये. वे एक सामाजिक कार्यकर्ता थे और उन्हें साजिश पूर्वक मारा गया. घटनास्थल पर पहले से घात लगा कर हत्यारों का बैठा रहना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि उन्हें रामजी मुंडा के वहां से गुजरने और समय की जानकारी थी. फिर उनके साथ मोटर साईकल पर सवार दो अन्य लोगों का बच निकलना इस बात का संकेत है कि हत्यारों का टारगेट रामजी मुंडा ही थे. उनके साथ सफर कर रहे दोनों व्यक्तियों का बयान विश्वसनीय नहीं. उनमें से एक तो उनका अपना भाई बेनसे मुंडा था और दूसरा उनके दूर का परिजन मदन नाग था.
बेनसे का कहना है कि वह भी घायल हो गया था, कुछ देर बेहोश भी रहा. सवाल उठता है कि हत्यारों ने उसे जीवित क्यों छोड़ दिया? वह घटना का चश्मदीद गवाह है. दूसरा मदन नाग, जिसका एक हाथ कटा हुआ है, हजारीबाग का रहने वाला है और वहां आया हुआ था. उसका कहना है कि वह झाड़ झंकाड़ में छुप गया. जब गांव वाले घटनास्थल पर पहुंचे, तब वह बाहर आया. सवाल उठता है कि हमलावर चार थे और ये तीनों भी तीन थे, फिर इन लोगों ने हमलावरों का मुकाबला करने की कोशिश क्यों नहीं की? रामजी मुंडा को छोड़ दोनों भाग क्यों खड़े हुए? मदन नाग यदि भागा भी तो झाड़ियों में वहीं क्यों छुपा रहा? ज बवह घटना स्थल के करीब ही था तो वह हत्यारों के बारे में किसी तरह का सुराग देने में असमर्थ क्यों है. वह हत्यारों की आवाज तो सुन सकता था? उसका जवाब है कि हत्यारे बात नहीं कर रहे थे, सीटी बजा बजा कर एक दूसरे को संकेत दे रहे थे.
पुलिस दोनों को पकड़ कर ले गयी थी, लेकिन उन्हें छोड़ भी दिया. कुल मिला कर पूरा मामला रहस्यमय लगता है. उस इलाके के सांसद और विधायक भाजपा के हैं. सांसद हैं अर्जुन मुंडा. विधायक हैं नीलकंठ मुंडा. घटना स्थल के करीब ही कड़िया मुंडा की हवेली है. दुमका में सिधो, कान्हू के किसी परिजन की संदेहास्पद मौत को लेकर भाजपा के नेता खूब सक्रिय हैं, लेकिन रांची से महज 45 किमी दूर खूंटी में हुई हत्या की यह घटना उन्हें आंदोलित नहीं कर रही.
यहां यह चर्चा करना प्रासांगिक होगा कि खूंटी में भाजपा शासन के दौरान एक तीव्र आंदोलन चला जिसे पत्थलगड़ी आंदोलन के नाम से जानते हैं. घाघरा गांव उस आंदोलन के केंद्र में रहा है. पत्थलगड़ी आंदोलन जल, जंगल, जमीन बचाओं आंदोलन का ही एक रूप है जिसे गुजरात से आयातित सति पति कल्ट से जुड़े कुछ लोगों ने उग्र रूप दे दिया है. इससे ग्रामीणों को तो कोई लाभ नहीं हुआ, लेकिन भाजपा शासन को ग्रामीणों को कुचलने का अवसर मिल गया. हजारों लोगों को वहां देशद्रोह का अभियुक्त बना दिया गया. पूरे इलाके में पुलिस की दबिश बढ़ा दी गयी. खूंटी एक पुलिस-सेना छावनी में बदल गया. इसी माहौल में पिछला संसदीय चुनाव हुआ जिसमें खूंटी क्षेत्र से पहली बार अर्जुन मुंडा चुनाव लड़े और चंद वोटों के अंतर से जीत गये. विधानसभा चुनाव में भाजपा हार गयी, लेकिन खूंटी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा जीत गयी.
महासभा के साथियों के संपर्क में आने के बाद रामजी मुंडा पत्थरगड़ी आंदोलन को सतिपति कल्ट से मुक्त कराने की कोशिशों में लगे थे. उनका प्रभाव अपने इलाके में बढ़ रहा था. यह बात उन लोगों को रास नहीं आ रही थी जो पत्थरगड़ी आंदोलन को विवादास्पद बनाने में लगे हैं. हो सकता है उनकी हत्या की वजह यह हो.
झामुमो गठबंधन सत्ता में आ तो गयी है, लेकिन राजनीतिक रूप से नुकसान पहुंचाने वाली इस तरह की घटनाओं के प्रति बेपरवाह है. भाजपा के नेताओं ने तो हत्या की इस घटना को कोई तवज्जो नहीं ही दी, झामुमो या गठबंधन के अन्य घटक दलों ने भी इस हत्या की कोई सुध नहीं ली. झामुमो ने इस बात की भी सुध नहीं ली कि रामजी मुंडा की मां और पत्नी, उसका नवजात बच्चा किस अवस्था में है. हमारे हिसाब से तो उनकी हालत खराब है. उसकी पत्नी की छाती का आपरेशन हुआ है और बच्चा एक तरफ से ही दूध पी पाता है और बेहद कमजोर. उन्हें इलाज की जरूरत है, आर्थिक मदद की जरूरत है.
रामजी मुंडा पारिवारिक विवाद या अन्य किसी व्यक्तिगत झगड़े में नहीं मारा गया, वह एक सामाजिक काउज के लिए मारा गया और उसकी मौत को शहादत ही कहा जायेगा.